Thursday, September 16, 2010

बिहार में भूख और खाद्य सुरक्षा की स्थिति

(रुपेश)
 (भूख से हुई मौतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पीयूसीएल द्वारा दायर याचिका के संदर्भ में कोर्ट द्वारा नियुक्त कमिश्नर के सलाहकार)


बिहार सरकार द्वारा 11.3 प्रतिशत विकास वृद्धि दर बताया जा रहा है, जो अप्ने आप में जादू है। परंतु इस चर्चा को छोड़ कर खाद्य सुरक्षा और पोषण स्तर, कुपोषण, प्रति व्यक्ति अनाज उपलब्धता, खेतिहर मजदूरों की बेरोजगारी, भूमिहीनों की स्थिति पर बिहार के तथाकथित विकास का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। सूखाड़ और बाढ के समय सरकार के कार्यक्रमों और घोषणाओं का कितना लाभ आम लोगों को मिलता है, यह जांच का विषय है।

पिछले 4 सालों में राज्य में 100 से अधिक लोग भूखमरी के कारण मौत के शिकार हुए हैं। इसमें गया में दो दर्जन से अधिक एवं मुजफ़्फ़रपुर में 29 भूख से मौतें हुई हैं। मरे लोगों में 6 साल के बच्चे से लेकर 80 साल की ठगनी देवी जैसी वृद्धा भी शामिल है। जब भूख से बहुतेरे लोग मरते हैं तो मीडिया जगत में भी क्षणिक उत्तेजना आती है। परंतु देश के सभी भागों में शासन कर रही सरकारों के जैसे बिहार सरकार भी उग्र रुप से भूख से हुई मौत को झुठलाना चाहती है। हर बार सरकारी तंत्र इसका प्रयास करता है कि भूख से हुई मौत को झुठला दिया जाये। इसके लिये स्वास्थ्य आदि का बहाना बनाया जाता है। आश्चर्य तो तब होता है जब सरकारी तंत्र मरे लोगों के पेट में अनाज के दाने होने की बात करता है।

जबकि वास्तविकता यह है कि जब आदमी को सही खाना पर्याप्त रुप में न मिले तो वह कई रोगों का शिकार हो जाता है। इसके अलावा भूख की यह परिभाषा तो है नहीं कि उसके पेट में अनाज का दाना है या नहीं। परंतु लंबे समय तक किसी भी व्यकित का बिना अनाज का रहना हमारे अस्तित्व पर सवालिया निशान लगाता है और सरकार को तो यह कतई रुचिकर नहीं लगता और ऐसी घटनाओं पर वह कोई प्रतिक्रिया नहीं जताती।

भूखमरी के बारे में मीडिया की शिकायत तथा राजनैतिक प्रतिक्रिया के बाद जब हम भूख से हुई मौत का विश्लेषण कर रहे होते हैं तो सरकारी जांच कर्ता पीड़ित परिजनों से ऐसे सवाल पूछते हैं जो बेहद शर्मनाक होते हैं और उनका तरीका भी बेहद अपमान जनक होता है। सरकार का पूरा जोर यह साबित करने लगता है कि मरने वाले को मरने से पहले अनाज मिला था या नहीं। अक्सर इस तरह के जांचों में सच्चाई सामने नहीं आ पाता।

इसमें कोई शंका नहीं है कि गरीबी के कारण ही राज्य में यह विध्वंस हुआ है और लोग भूखमरी के शिकार हो रहे हैं। इस परिस्थिति में सरकार द्वारा पहले तो मौनव्रत और मीडिया एवं अन्य सामाजिक संगाठनों द्वारा आवाज उठाये जाने यह अपेक्षा बनती है कि सरकार कुछ कदम उठाये। परंतु, सबसे दुखद यह है कि सरकार कोई कदम नहीं उठाती। 
http://www.apnabihar.org/rupesh.htm

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